चिड़िया का मनोबल
एक चिड़िया बड़ी मेहनत से संजोती है नीड़ अपना,
बार बार उड़ती है और ले आती हैं चोंच में दबाकर
छोटे छोटे तिनकों को...
फुर्ररर से उड़ जाती है और जब वापस आती है तो चोंच में होती है कभी झाड़ू की कतरन,तो कभी कपड़े और कागज की चिंदियाँ.
पहले कुछ क्षण वो ताकती हैं कि कोई खतरा तो नहीं और जब आश्वस्त हो जाती है कोई आहट ना पाकर, तो चुपके से सजा देती है तिनके तिनके को |
तैयार होता है उसके सपनों का महल जो उसे सुरक्षितता का अहसास कराता है |
चिड़ा भी उसकी मदद् करवाता है,कभी वो ठहरती है नीड पर तो चिड़ा दाने लाता है|
दोनों अपनी मेहनत से सजा ही लेते हैं आशियाना अपना| कमाल के होते हैं ये पंछी भी...बिना कुछ सीखे सुंदर सा घरौंदा बना लेते हैं,
पर प्रकृति के आगे सब हतबल हैं.....
जब प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाती है तो कयामत सभी पर आती है,
पंछी हो या इंसान,कुदरत सभी पर कहर बरपाती है |
चंद पलों के आये तूफान से जब चिड़िया का नीड़ धराशायी हो जाता है,तो चिड़े के साथ बैठकर कुछ पल का गम साँझा करती है,
देखकर अपने उजड़े आशियाने को,
ना चीत्कार करती है,ना किसी मदद की गुहार लगाती है|
इनके बुलंद हौसलों के आगे तो इंसान भी हैरान है...
ये फ़िर उड़ती हैं पंखों में नया बल लेकर,नये आशियाने का सपना लेकर
फ़िर से चोंच में तिनका तिनका दबा लाती है,
उसी जज्बे और उसी मेहनत से सुंदर नीड़ फ़िर से बनाती है|
ना वह करती है शिकवा किसी से,ना कभी शिकायतें,
नन्ही चिड़िया अपने मनोबल से,अपने जुनून से
हारी हुई जंग आखिरकार जीत ही जाती है |
किसी नये प्रहार से अंजान चिड़ियाँ,फ़िर गाती गुनगुनाती हैं
चीं चीं चीं करती,दिखने में नन्हीं सी,नाजुक सी
शांत संयमी,चिड़ियाँ
बिखरकर फ़िर उठ खड़े होने का मनोबल और संयम
पता नहीं...
कैसे और कहाँ से लाती हैं?
खुशी खुशी दाना जुटाने ये चिड़िया फ़िर फुर्र से उड़ जाती है |
पल्लवी लघाटे